आवरी माता का मंदिर - आवरी माता का मंदिर हिंदुओं का प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है। आवरी माता का मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर के समिप स्थित है। आवरी मााता का मंदिर चित्तौड़गढ़ से 40 किलोमीटर की दूरी पर आसावरा गांव में स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर 750 वर्ष सेे भी अधिक पुराना हे।
यह भव्य मंदिर पहाड़ियों और झरनों के बीच खूबसूरती से बचा हुआ है। आवरी माता मंदिर आसावरा गांव को समर्पित है। यह मंदिर एक तालाब के पास स्थित है। जो माना जाता है कि यह पवित्र है। और वहां पर भगवान हनुमान की सुंदर मूर्ति है। माता की मूर्ति मंदिर के मुख्य मध्य भाग में स्थित है। और मूर्ति को सुंदर फूलों और सोने के गहनों के साथ सजाया जाता है।
ऐसा माना जाता है। कि भदेसर गांव जमींदार का नाम आवाजी था। आवाजी के 7 पुत्र व एक पुत्री थी। आवाजी ने अपने पुत्रों से अपनी पुत्री के विवाह के लिए सुयोग्य देखने के लिए कहा। सातों भाइयों ने अलग-अलग जगह विवाह तय कर दिया। कैसर ने अपनी कुलदेवी की आराधना की और इस समस्या को ठीक करने का आग्रह किया। विवाह के दिन धरती फटी केसर उस में समा गई। पुत्री को धरती में समाते हुए देख पिता ने अपनी पुत्री का पल्लू पकड़ लिया। इससे नाराज केसर ने अपने पिता को श्राप दे दिया था। आवाजी ने श्राप मुक्ति होने के लिए मंदिर का निर्माण करवाया। जो आज आवरी माता के नाम से विख्यात है।
आवरी माता मंदिर की विशेषता है। कि इस मंदिर मे पुलिया व पक्षाघात (विकलांग, तोतली, ) पैरालाइस रोगी इस मंदिर मैं। पूजा अर्चना करने से ठीक हो जाते हैं। और उन्हें यहां पर रहना पड़ता है। और शरीर का जो अंग बीमारी से ठीक होता है। उस अंग के जैसा सोने व चांदी का अंग बना कर माता को अर्पण किया जाता है। और माता के थाल प्रसादी आदि चढ़ावा करते हैं। भक्त आवरी माता के दैनिक आरती में भाग लेते हैं। जो पवित्र आरती देखने के लिए भक्त बड़ी संख्या में वहां उपस्थित होते हैं।
आवरी माता मंदिर में सभी त्योहार मनाए जाते हैं। विशेषकर दुर्गा पूजा नवरात्रा और हनुमान जयंती के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। वह मेले लगाए जाते हैं। और मंदिर को फूलों व लाइट डेकोरेशन से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान कराता है।
















